Friday, March 12, 2010

प्रेम (Love)


प्रेम त्याग भावना , कर्तब्य भावना से ही होना चाहिए |

सौदर्य और वासना का प्रेम , प्रेम नहीं होता है |


वह एक तरह का धोखा है | प्रेम आत्मा से किया जाता है |

शारीर से नहीं क्योंकि शारीर नाशवान है |


प्रेम कर्तव से किया जाता है | कामुकता से नहीं |

प्रेम में किसी प्रकार का विकार नहीं होना चाहिए |


प्रेम गंगा जल की तरह पवित्र होना चाहिए |

प्रेम में निस्वार्थ सेवा भावना होनी चाहिए |


प्रेम किसी से भी किया जा सकता है |

यदि व्यक्ति में ये सभी विचार हो तभी वह

एक प्रेम पुजारी कहा जा सकता है |


और संसार स्वर्ग बन जायगा , और प्रत्येक

जगह सन्ति , सदभावना, और संतोष हो जायगा |


आपसी प्रेम से ही यह संसार स्वर्ग बन सकता है |

और उसके आभाव से लोगो का जीवन मुश्किल होता जा रहा है |

इसलिए प्रेम के मार्ग पर चलना आवशक है |

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